फ़्राँस में संस्कृत
Thread poster: Ritu Bhanot
Ritu Bhanot
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Oct 10, 2007

मैं जानती हूँ कि हमारे देश में अपने गुरुजनों की आलोचना को गलत समझा जाता है इसलिये जिन्हें मेरी बातों से ठेस पहुंच सकती हो मैं उनसे क्षमा मांगती हूँ परंतु देख कर मक्खी निगलना कठिन है खा़स कर जब �... See more
मैं जानती हूँ कि हमारे देश में अपने गुरुजनों की आलोचना को गलत समझा जाता है इसलिये जिन्हें मेरी बातों से ठेस पहुंच सकती हो मैं उनसे क्षमा मांगती हूँ परंतु देख कर मक्खी निगलना कठिन है खा़स कर जब बात अपनी भाषा व संस्कृति की हो ।

जी हाँ मैं आजकल फ़्राँस में हूँ और फ़्राँसीसी भाषा का अध्ययन कर रही हूँ । चूंकि मेरे अध्ययन में एक भाग था जिसमें मुझे विभिन्न विषयों में से एक चुनना था और लेटिन पढ़ना अनिवार्य था तो यह सोच कर कि संस्कृत तो अपनी भाषा है और मैंने लंबे समय तक पढ़ी भी है... मैंने लेटिन के साथ संस्कृत भाषा को चुना ।

अपने मुँह मिंया मिट्ठु बनने जैसी बात है परंतु जो प्रोफ़ेसर साहब हैं उन्हें संस्कृत का कुछ ज्ञान तो है परंतु यह ज्ञान बहुत ही सीमित है । पहले तो वे घबरा गये परंतु जब मैंने यह तर्क दिया कि जब मैं उनके विश्वविद्यालय के उन विद्यार्थियों के साथ लेटिन पढ़ सकती हूँ जो पहले ही लेटिन पढ़ चुके हैं तो वे चुप हो गये... परंतु उनका संस्कृत का उच्चारण इतना गलत है (अंग्रेज़ी के तुर्रे पर - बेचारे अर्जुन अर्जुना बन जाते हैं इत्यादि) कि अब वे मेरे नामों के उच्चारण में गलतियां निकालने कि कोशिश कर रहे हैं हालांकि मैंने उन्हें कोई ऐसा कारण नहीं दिया न ही कक्षा में ज़रूरत से ज़्यादा बोली इत्यादि । उनका कहना है कि दर असल नाम तो अर्जुना / भीमा था परंतु हम हिंदी के प्रभाव में आ कर गलत उच्चारण करते हैं । चलिये ठीक है अब जब हरियाणवी "ऐ अर्जुना" कहते हैं तो हंसिये मत, वे तो संस्कृत बोल रहे हैं

जानती हूँ गुरू सर्वोपरी होते हैं परंतु मैं यह सोच रही हूँ कि विश्वविद्यालय स्तर पर एक भाषा की यह दुर्गती । अब आप अंग्रेज़ी के फ़ोरम में अक्सर मातृ-भाषा संबंधी बातें पढ़ते होंगे... मगर पश्चिम वाले अपने गिरेबान में झांक कर क्यों नहीं देखते ।

चलिये एक नया किस्सा -
भग्वद्गीता महाभारत का हिस्सा है । सही ।

परंतु प्रोफ़ेसर साहब के हिसाब से इसके रचयिता का नाम (जो कि भारत का बच्चा-बच्चा जानता होगा) अज्ञात है !!!

और श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश भीष्म (या भीष्मा) पितामह की मृत्यु के बाद दिया था ।

यहाँ एक नयी महाभारत रची जा रही है जिसके बारे में भारत में कोई नहीं जानता । बी आर चोपड़ा को अपना धारावाहिक फिर बनाना पड़ेगा ।

अगर किसी ने गीता पड़ी हो (महात्मय सहित) तो उसे यह ज़रूर पता होगा कि गीता में १८ अध्याय क्यों हैं ? परंतु अभी प्रोफ़ेसर साहब (जो करीब ६०-७० साल के होंगे) इसके पीछे का कारण नहीं जान पाये हैं ।

कहते हैं नीम हकीम ख़तरा-ए-जान... और जब हर तरफ़ हमारे देश की खिल्ली उड़ायी जाती है और हमें यह पूछा जाता है कि हम उन भाषाओं में अनुवाद क्यों करते हैं जो हमारी मातृ-भाषा नहीं है वहाँ पाश्चात्य भाषा-जगत का यह एक अनूठा उदाहरण है ।

आपका क्या विचार है?
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Mrudula Tambe
Mrudula Tambe  Identity Verified
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In memoriam
अब बोलने के लिये बचा ही क्या हैं? Oct 10, 2007

@ अब वे मेरे नामों के उच्चारण में गलतियां निकालने कि कोशिश कर रहे हैं...

आघ्रातं परिचुम्बितं ननु मुहुर्लीढं ततश्चर्वितं
त्यक्तं वा भुवि नीरसेन मनसा तत्र व्यथां मा कृथा:।
हे सद्रत्नतवैतदेव कुशलं यद्वानरेणादरात्
अन्त:सारविलोकनव्यसनिना चूर्णीकृतं नाश्मना।।


 
nke
nke
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ईंग्लैंड में संस्कृत Mar 26, 2008

ऋतुजी,

फ्राँस के आपके विष्वविद्यालय में संस्कृत की बात पढ‌कर यह जानना चाहती हूँ कि यह प्रोफेसर साह‌ब स्वयं भारतीय है या फ्राँसीसी. आप ईंग्लैंड से इतनी दूर नहीं है तो जब भी यहाँ पधारे तो अ
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ऋतुजी,

फ्राँस के आपके विष्वविद्यालय में संस्कृत की बात पढ‌कर यह जानना चाहती हूँ कि यह प्रोफेसर साह‌ब स्वयं भारतीय है या फ्राँसीसी. आप ईंग्लैंड से इतनी दूर नहीं है तो जब भी यहाँ पधारे तो अवश्य यहाँ के कुछ सांस्कृतिक संस्थाओं और विष्वविद्यालय की मुलाकात के लिए समय रखिएगा. यहाँ पर संस्कृत का स्तर अत्यंत ही ऊँचा है. ना ही केवल हमारे अपने भारतीय विधा भवन में परंतु SOAS, Cambridge University और‌ School of Economic Science जैसी अंग्रेज़ संस्थाओं में गोरे प्रोफेसरों की विद्वत्ता सचमुच ही वंदनीय है. उदाहरण के तौर पर एक गोरे पादरी हमें पाणिनि का व्याकरण और गीता सीखा रहे थे जिस पर मेरे विद्वान मातापिता भी खुश हो गए थे. कभी कभी मुझे लगता है कि भारत की संस्कृति के लिए जितना आदर और विद्वता इन लोगों में भरी है इतनी शायद भारत में मुश्किल से मिलेगी. सुना है जर्मनी में भी संस्कृत की विद्वत्ता उच्चतम है.
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PRAKASH SHARMA
PRAKASH SHARMA  Identity Verified
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शोभनं Sep 8, 2008

भो ऋतु!

तव संदेशेन एतत् प्रमाणि‍त: भवति‍ यत् वि‍देशेषु क्‍वचि‍द् तथाकथि‍ता: वि‍द्वाना: ‍भाषायाम् अपरि‍पक्‍वा: भूत्‍वा अपि‍ उच्‍चेषु पदेषु ग्रहीत्‍वा अज्ञानं वि‍स्‍तारं कुर्वन्‍ति‍.
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भो ऋतु!

तव संदेशेन एतत् प्रमाणि‍त: भवति‍ यत् वि‍देशेषु क्‍वचि‍द् तथाकथि‍ता: वि‍द्वाना: ‍भाषायाम् अपरि‍पक्‍वा: भूत्‍वा अपि‍ उच्‍चेषु पदेषु ग्रहीत्‍वा अज्ञानं वि‍स्‍तारं कुर्वन्‍ति‍. परं किं उक्‍त: यत् स्‍वदेशे अपि‍ संस्‍कृतस्‍य वि‍लोपनस्‍य षड्यंत्रम् रचि‍‍त:. अस्‍माकं काले संस्‍कृत भाषा तथापि‍ पठि‍त: परं अधुना संस्‍कृतस्‍य वि‍कल्‍प रूपेण फ़ेंच भाषा उपलब्‍धा इति‍ मया श्रुत:. फ्रेंच भाषा आधुनि‍क समये सर्वाधि‍कासु लोकप्रि‍यासु भाषासु मध्‍ये एका स्‍थि‍ता. किं कथि‍तं एतत् देहली सरकारस्‍य, भारतस्‍य सरकारस्‍य क्रि‍यां? मया संस्‍कृत-भाषाया: औपचारि‍क शि‍क्षा परि‍त्‍यक्‍त: स्‍नातकोत्तरे प्रथम वर्षे संवत् 2000 तमे पारि‍वारि‍क-कारणात्. अधुना यत् फ़्रीलांस कार्याणि‍ प्राप्‍तं करोमि‍ तदपि‍ विदेशात् प्राप्‍तं करोमि‍ न तु स्‍वदेशात्. यदि‍ सरकारेण मया शि‍क्षार्थं शोधार्थं वि‍त्तसहायता आजीवि‍का रूपेण कि‍मपि‍ छातृवृतिं प्रदत्ता, करि‍यरेषु कि‍मपि‍ उत्तमं वि‍कल्‍पं प्रदत्ता, तदा मया अपि‍ उच्‍चस्‍तरात् संस्‍कृत भाषा पठि‍ता, वेदं पठि‍त्‍वा देशस्‍य च सेवां कृत:.
अन्‍त्‍ये अनभ्‍यासेन हि‍ वि‍षम वि‍द्या.
एतत् संदेशे नि‍श्‍चि‍तरूपेण क्‍वचि‍द् व्‍याकरण-त्रुटय: अपि‍ सन्‍ति‍ संपादनस्‍य अभावे. क्षमाप्रार्थि‍नोSस्‍मि‍ तदर्थं.

प्रकाश: शर्मणोSहम्
संस्‍कृत-हि‍न्‍दी-नेपाली-आंग्‍ल भाषानाम् अनुवादक:

[2008-09-08 12:27 पर संपादन हुआ]
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PRAKASH SHARMA
PRAKASH SHARMA  Identity Verified
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Local time: 06:28
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Correcting your spelling and other mistakes. Dec 2, 2008

nke wrote:

ऋतुजी,

फ्राँस के आपके विश्‍वविद्यालय में संस्कृत की बात पढ‌कर यह जानना चाहती हूँ कि यह प्रोफे़सर साह‌ब स्वयं भारतीय हैं या फ्राँसीसी. आप इंग्लैंड से इतनी दूर नहीं है. सो जब भी यहाँ पधारे तो यहाँ कुछ सांस्कृतिक संस्थाओं और विश्‍वविद्यालय में मुलाकात के लिए फुर्सत नि‍काल के अवश्‍य रखिएगा. यहाँ पर संस्कृत का स्तर अत्यंत ही ऊँचा है. न केवल हमारे अपने भारतीय विद्या भवन में अपि‍तु SOAS, Cambridge University और‌ School of Economic Science जैसी अंग्रेज़ संस्थाओं में भी गोरे प्रोफेसरों की विद्वत्ता सचमुच ही वंदनीय है. उदाहरण के तौर पर, एक गोरे पादरी हमें पाणिनि का व्याकरण और गीता सीखा रहे थे, जिस पर मेरे विद्वान मातापिता भी खुश हो गए थे. कभी कभी मुझे लगता है कि भारत की संस्कृति के लिए जितना आदर और विद्वता इन लोगों में भरी है, इतनी शायद भारत में मुश्किल से मिलेगी. सुना है, जर्मनी में भी संस्कृत की विद्वत्ता उच्चतम है.


Just corrected your mistakes!


 
Umang Dholabhai
Umang Dholabhai  Identity Verified
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Bad taste... Mar 11, 2009

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